माँ बताओ कहाँ है वो दुनिया

   माँ बताओ कहाँ है वो दुनिया,
जिसमें रहती थीं सपनों की परीयाँ|


मेरे आँगन में दिन भर फुदकती, जब मैं हँसता तो वो भी चहकती,

मेरी थाली से दाना उठाकर, बैठ जाती जाकर वो मुँडेरों पर|
फिर बुला दो नन्हीं सी चिड़िया,
माँ बताओ कहाँ है वो दुनिया||


पेड़ जो थे नदी के किनारे, थे फरिश्ते मोहब्बत के सारे,

धूप शाखाओं को छलने लगी है,स्याही चाहत की मिटने लगी है|
लुट गयी बुढ़े बरगद की दुनिया,
Maa poem, poetry, mother day poem,

माँ बताओ कहाँ है वो दुनिया||


बारिशों में निकलना था मना, बात कब तेरी मैं मानता था,

कश्तियाँ थी महज कागजो़ं की, उनमें भी न थी कमीं हौंसलौ की|
डूब जाती थी उनमें भी नदियाँ,
माँ बताओ कहाँ है वो दुनिया||


एक झूठी तसल्ली दिलाकर, राजा रानी की कहानी सुनाकर,

भूखी सो जाती थी वो गुड़िया,
माँ बताओ कहाँ है वो दुनिया||


हर गली से वो रिश्ता जुड़ा था, जिनमें बचपन मेरा गुजरा था,

अब तो सन्नाटें बस गुँजते हैं, क्या लूटेरे यहाँ घुमते हैं|
कितनी सहमी हुई हैं ये गलियाँ,
माँ बताओ कहाँ है वो दुनिया||


तुमने जितनी सुनी हैं कथाएँ, सबसे ज्यादा है माँ की व्यथाएँ,

हाथ मजदुरी कर थक गए, दो बेटे थे फिर भी लुट गए 
बच्चे ही थे उसके दुनिया,
माँ कहाँ है वो दुनिया||

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